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नया साल...

नया साल... आज साल बदल गए, सबके चाल बदल गए जिन्हें खटकते रहे  हम पूरे साल, हैरत में हूं आज उन्होंने भी पूछे मेरे हाल दिसंबर में जो निराश बैठे थे , आज उनमें भी आश जगे थे। सोच रहा हूं आखिर आज नया क्या है? आज दुनिया में सभी ने पाया क्या है? ना बदले हैं हालात ना बदलेंगे हालात,         कर कुछ ऐसा ! जिसके बीच न आए दिन, और ना ही रात। ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

कोई खास....

कोई खास.... कभी तुम अजनबी थे, आज अपने हो गए, कभी तुम नाचीज़ थे , आज अज़ीज़ हो गए। साथ चाहते हो तो साथ है हम, जब साथ हो ही गए तो ,किस बात का है गम, यह तो तय है तुमसे मिलना इत्तेफ़ाक नहीं, हर बार कुछ बेवजह हो , यह सही तो नहीं जब इस भीड़ में खुद को खो देना कहीं, लौट आना वहां जहां मिले थे हम कभी, ये मंजिलें , ये रास्ते इतनी भी सस्ते कहां है, जब निकल पड़े हो अकेले, क्यों पूछते हो रास्ते कहां है? कुछ कर दिखा जिंदगी में ऐसा, किसी ने सोचा तक न हो वैसा। ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

खुद की खोज

खुद की खोज... अरे ! क्यों बैठा है तू उदास, खो दिया क्या कुछ खास। उठ , चल देख सुबह हो चली है बाग में तो खिल चुकी कली है, सुबह के बज चुके हैं दस, तू बैठा क्यों ? है बन कर बे-वश, सूरज भी अपनी गर्मी में है, पर तू इतना नरमी में क्यों? है, मिलेगा तुझे भी तेरा रास्ता, पहले कर खुद से खुद का वास्ता, क्यों ? बन बैठा है लाचार, इस दुनिया में रास्ते हैं हजार ! निकल तू खुद की खोज में, रह हमेशा अपनी मौज में । जब जब हवाओं ने रुख मोड़ा है, तब तब उसने हर बंधन को तोड़ा है।। ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

मेरा गांव...

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    मेरा गांव.... समय कुछ ऐसा गुजरा पता ही न चला, कुछ तो पसंद आया हमें, कुछ तो बहुत खला। ये पांव, ये ख्वाहिशें, ठहर से गए हैं, गांव छोड़कर शहर जो गए हैं हवा भी अनजान सी लगती है, ये शाम भी वीरान सी लगती है, शहर की सर्दी भी सताती है सच कहूं मां तेरी याद बहुत आती है।। गांव की धूप भी शीतल लगती थी, यहां की तो रात भी जलाती है। गर !! यह जिम्मेदारी सामने न खड़ा हुआ होता, तो यह परिंदा (मैं) भी घोसला छोड़ ना उड़ा होता। -अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

मेरी चाहत...

मेरी चाहत... जिसने हमें चाहा, हम उसके हो ना सके, गम था इस बात का, फिर भी रो न सके। इल्ज़ाम लगाया उन्होंने हम पर बे-वफाई का, पर हम इस इल्ज़ाम पर भी कुछ कह ना सके।। हमारी खामोशी देख, उन्हें विश्वास हो गया था, जिस काबिल हम न थे, वो हमें मिल गया था। यूं मुंह फेर कर वह चले गए हमसे दूर, हमने उन्हें रोका तक नहीं, हम इतने थे मजबूर। सोचता हूं उनसे होगी कभी हमारी मुलाकात, न जाने वह कौन सा दिन होगा, या कौन सी होगी रात, सच हुआ सपना हमारा दिखे वो हमें एक रात, पर अफ़सोस था हमें, उस दिन आई थी उनके लिए बारात।। -अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

चाँद और मेरी चाह...

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    चाँद और मेरी  चाह...    आज तो चाँद से बात बिगड़ गई, चाँद कुछ बोलता, उससे पहले चांदनी उखड़ गई। कहने लगी चांद ना होता तो रात कहां होती, रात भी ना होती तो हमारी मुलाकात भी ना होती। हमें हंसता देख चांद बोला, तू हंसता क्यों है ?? हमने कहा यह बता ! चकोर के सिवा तुझे देखता कौन है। चांद बोला मुझे चाहने वाले तो अनेक हैं, हमने कहा हम जिसे चाहते हैं, उसे चाहने वाला सिर्फ एक हैं। इतने में चांदनी बोली चांद सा इस दुनिया में कौन है, मैंने भी कह दिया चांद सा बनना चाहता ही कौन है। चांद ने कहा, कभी अपनी चाहत से मिला तो सही, हमने कहा ,तू कभी मेरी चाह की राह में आ तो सही। इतना गुरुर मत कर ऐ चांद! तू तो कभी पूरा ही ना हुआ, जब से मिली है मुझे मेरी चाह ,मैं तो कभी अधूरा ही ना हुआ! मेरी चाहत से तू कभी मिल ही ना पाएगा क्योंकि सुबह तक तो तू रुक ही ना पाएगा। । ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

वक्त...

        वक्त....... भागदौड़ के बाद ज़िंदगी में, एक ठहराव तो आता है, इस जिंदगी में क भी न कभी, कोई रास तो आता है।। सोचते हैं पकड़ कर उनका हाथ निकल जाए कहीं दूर,  पर जब याद आती है जिम्मेदारियां ! हो जाते हैं मजबूर। टुुट चुका हूं अंदर से इतना, कि कोई छू ले तो बिखर जाऊं, काश ! मिल जाता कोई ऐसा,  जिसके साथ से निखर जाऊं। जब साथ किस्मत ने छोड़ा , हाथ मेरे अपनों ने जोड़ा, आज हवाएं भी मेरे साथ नहीं ,उन्होंनेे भी अपना रुख मोड़ा। रचेंगे इतिहास एक दिन बस मिल जाए वक्त थोड़ा।। ----अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏