खुद की खोज

खुद की खोज...


अरे ! क्यों बैठा है तू उदास,
खो दिया क्या कुछ खास।

उठ , चल देख सुबह हो चली है
बाग में तो खिल चुकी कली है,
सुबह के बज चुके हैं दस,
तू बैठा क्यों ? है बन कर बे-वश,

सूरज भी अपनी गर्मी में है,
पर तू इतना नरमी में क्यों? है,

मिलेगा तुझे भी तेरा रास्ता,
पहले कर खुद से खुद का वास्ता,
क्यों ? बन बैठा है लाचार,
इस दुनिया में रास्ते हैं हजार !

निकल तू खुद की खोज में,
रह हमेशा अपनी मौज में ।

जब जब हवाओं ने रुख मोड़ा है,
तब तब उसने हर बंधन को तोड़ा है।।


---अभिषेक सिंह


आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।।


🙏🙏धन्यवाद🙏🙏



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