यादें...

                                      यादें.....

               कर्ज़दार हूँ उन हाथों का,जिसे पकड़ कर मैं चला।
            गिरता हूँ आज भी इस ज़माने में,वो हाथ साथ होता भला,
     याद आती है बचपन की हर गलतियां,उनका डांटना,मेरा रूठना
          वो नखरें न खाने की और उनका मेरे पीछे पीछे भागना।

               उन्हें ताकत कहूं,चाहत कहूं या कहूं बस एक याद,
                बहुत ढूंढा,तलाशा मिला न कोई वैसा उनके बाद
                       आज भी होती है सुबह, होती है शाम,
        सब कुछ है मेरे पास,बस नहीं है तो उनका कोई निशान।
     सोचता हूँ मिले अगर कभी खुदा , तो दूंगा उनको एक पैगाम,
    उनसे जाकर कह देना चाहता हूँ करना उनके बाहों में आराम।।

आशा करता हूँ कि यह कविता आपको पसंद आएगी।

                             🙏धन्यवाद🙏


Comments

  1. दिल की गहराइयों से लिखी है ये पंक्तियाँ
    बचपन का एहसास दिला दिया इन पंक्तियो ने बहुत खुब लिखा है आपने 👌👍💐

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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  2. लाजवाब ,👌👌👌

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  3. Beautifull lines.....,,,👍👍👍👍👍

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  4. कवि की रचना बहुत हृदयस्पर्शी है।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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