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Showing posts from September, 2019

चाँद और मेरी चाह...

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    चाँद और मेरी  चाह...    आज तो चाँद से बात बिगड़ गई, चाँद कुछ बोलता, उससे पहले चांदनी उखड़ गई। कहने लगी चांद ना होता तो रात कहां होती, रात भी ना होती तो हमारी मुलाकात भी ना होती। हमें हंसता देख चांद बोला, तू हंसता क्यों है ?? हमने कहा यह बता ! चकोर के सिवा तुझे देखता कौन है। चांद बोला मुझे चाहने वाले तो अनेक हैं, हमने कहा हम जिसे चाहते हैं, उसे चाहने वाला सिर्फ एक हैं। इतने में चांदनी बोली चांद सा इस दुनिया में कौन है, मैंने भी कह दिया चांद सा बनना चाहता ही कौन है। चांद ने कहा, कभी अपनी चाहत से मिला तो सही, हमने कहा ,तू कभी मेरी चाह की राह में आ तो सही। इतना गुरुर मत कर ऐ चांद! तू तो कभी पूरा ही ना हुआ, जब से मिली है मुझे मेरी चाह ,मैं तो कभी अधूरा ही ना हुआ! मेरी चाहत से तू कभी मिल ही ना पाएगा क्योंकि सुबह तक तो तू रुक ही ना पाएगा। । ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

वक्त...

        वक्त....... भागदौड़ के बाद ज़िंदगी में, एक ठहराव तो आता है, इस जिंदगी में क भी न कभी, कोई रास तो आता है।। सोचते हैं पकड़ कर उनका हाथ निकल जाए कहीं दूर,  पर जब याद आती है जिम्मेदारियां ! हो जाते हैं मजबूर। टुुट चुका हूं अंदर से इतना, कि कोई छू ले तो बिखर जाऊं, काश ! मिल जाता कोई ऐसा,  जिसके साथ से निखर जाऊं। जब साथ किस्मत ने छोड़ा , हाथ मेरे अपनों ने जोड़ा, आज हवाएं भी मेरे साथ नहीं ,उन्होंनेे भी अपना रुख मोड़ा। रचेंगे इतिहास एक दिन बस मिल जाए वक्त थोड़ा।। ----अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏

मैं और आईना

      मैं और आईना   आ ज खुद को आईने में जब मैंने देखा, गौर किया चेहरे पर, पड़ी थी कई रेखा। देखकर लगा कि अब तो उम्र हो चली है, सोचा रुक कर खुद से बात किया जाए, जब नज़र पड़ी घड़ी पर तब लगा समय हो चला।                  बाहर भी जाना था और खुद से बात भी करनी थी, सामने जिम्मेदारियां भी थी ,खुद से मुलाकात भी करनी थी। आईने में देख मैं मुस्कुराया ,निकल पड़ा मैं काम पर, सोचने लगा मैं हंसा आईने पर ,या आईना हंसा मुझ पर। आज सारा दिन यही सोचता रहा कि क्या ? कमाता हूं मैं, खुद से ही बिछड़ गया हूं , आख़िर क्या पाता हूं मैं। लौटा शाम में थका हारा जब ,पहुंचा फिर आईने के पास, पूछा आईने से बता ! कैसा लगता हूं मैं तुझे, आईने ने कहा, वैसे तो तू लगता नहीं कुछ खास, तेरी जिम्मेदारियां देख गर्व होता है, जब खड़ा होता है तू मेरे पास।। -- अभिषेक सिंह    🙏धन्यवाद🙏 आशा करता हूं कि आप सभी को यह कविता पसंद आएगी। अपना कॉमेंट लिखें और इसे शेयर करें।

नन्हीं कली.....

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               नन्हीं कली....  नन्हीं कली, जब इस दुनिया में आती है, क्यों? नहीं वह हर शख्स को भाती है। इसमें उसका क्या कसूर कि वह एक लड़़की है, उसे तो लाया गया इस दुनिया में, आसमां से तो ना टपकी है। सिखाए जाते हैं ,उसे दुनिया भर के हुनर, कहा जाता है चलना तू झुका के अपनी नज़र। उसकी शादी नही, एक सौदा किया जाता है, मैं आज तक ना समझा ,फिर पैदा ही क्यों किया जाता है। वह देर से घर आए, तो कहलाती बदचलन है। वाह ! रे दुनिया तेरा तो अलग ही चलन है। अखबारों में भी बस एक ही चर्चा होता आम है, कितनों की इज्जत लूटी ,कितनों का हुुुुआ कत्लेआम है। इनके (बेटियां) बिना हम कुछ भी नहीं यह तो हमारी शान है, मत भूलो ए दुनिया वालों!! "मां" भी एक लड़की का ही नाम है।। -- अभिषेक सिंह     🙏धन्यवाद🙏 आशा करता हूं कि आप सभी को यह कविता पसंद आएगी। अपना कॉमेंट लिखें और इसे शेयर करें।

ज़िन्दगी एक जंग

                  ज़िन्दगी एक जंग ज़िन्दगी हर रोज़ एक जंग है, गैरों की क्या कहूं !हम तो अपनों से ही तंग हैं।  आज मेरा हर हिस्सा,हर किस्सा भंग है, वो भी मेरे अपने नहीं,जो मेरे संग हैं। ना ज़िन्दगी ने दी मोहल्लत,ना क़िस्मत ने दिया साथ, मेरी ज़िंदगी कुछ ऐसी बिखरी, अपनों ने ही छोड़ दिया हाथ। वक्त ने अपना दिखाया, अपनों ने अपनी दिखाई, मैं बुनता कैसे सपने ! ज़िन्दगी ने दुनियादारी जो सिखाई।। वक्त के मझधार में ज़िंदगी मेरी ही नाव डुबाने लगी, सोचा ! ज़िंदगी से रुख़ ही मोड़ लूं (आत्महत्या),    पर मुझे मेरी "मां" याद आने लगी।। धुंधला सा लगने लगा था इस वक्त की आंधी में। याद आईं जब जिम्मेदारियां!! लग गया हुं,    एक नए जंग की तैयारी में।। My first poetry:- on this link https://mypoetrywithchai.blogspot.com/2019/09/blog-post.html?m=1 ##अभिषेक सिंह## आशा करता हूँ कि यह कविता आपको पसंद आएगी।          🙏धन्यवाद🙏

यादें...

                                      यादें.....                 कर्ज़दार हूँ उन हाथों का,जिसे पकड़ कर मैं चला।             गिरता हूँ आज भी इस ज़माने में,वो हाथ साथ होता भला,      याद आती है बचपन की हर गलतियां,उनका डांटना,मेरा रूठना           वो नखरें न खाने की और उनका मेरे पीछे पीछे भागना।                उन्हें ताकत कहूं,चाहत कहूं या कहूं बस एक याद ,                 बहुत ढूंढा,तलाशा मिला न कोई वैसा उनके बाद                        आज भी होती है सुबह, होती है शाम,         सब कुछ है मेरे पास,बस नहीं है तो उनका कोई निशान।      सोचता हूँ मिले अगर कभी खुदा , तो दूंगा उनको एक पैगाम,     उनसे जाकर कह देना चाहता हूँ करना उनके बाहों में आराम।। आशा करता हूँ कि यह कविता आपको पसंद आएगी।                              🙏धन्यवाद🙏