चाँद और मेरी चाह...
चाँद और मेरी चाह... आज तो चाँद से बात बिगड़ गई, चाँद कुछ बोलता, उससे पहले चांदनी उखड़ गई। कहने लगी चांद ना होता तो रात कहां होती, रात भी ना होती तो हमारी मुलाकात भी ना होती। हमें हंसता देख चांद बोला, तू हंसता क्यों है ?? हमने कहा यह बता ! चकोर के सिवा तुझे देखता कौन है। चांद बोला मुझे चाहने वाले तो अनेक हैं, हमने कहा हम जिसे चाहते हैं, उसे चाहने वाला सिर्फ एक हैं। इतने में चांदनी बोली चांद सा इस दुनिया में कौन है, मैंने भी कह दिया चांद सा बनना चाहता ही कौन है। चांद ने कहा, कभी अपनी चाहत से मिला तो सही, हमने कहा ,तू कभी मेरी चाह की राह में आ तो सही। इतना गुरुर मत कर ऐ चांद! तू तो कभी पूरा ही ना हुआ, जब से मिली है मुझे मेरी चाह ,मैं तो कभी अधूरा ही ना हुआ! मेरी चाहत से तू कभी मिल ही ना पाएगा क्योंकि सुबह तक तो तू रुक ही ना पाएगा। । ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏