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कोई खास....

कोई खास.... कभी तुम अजनबी थे, आज अपने हो गए, कभी तुम नाचीज़ थे , आज अज़ीज़ हो गए। साथ चाहते हो तो साथ है हम, जब साथ हो ही गए तो ,किस बात का है गम, यह तो तय है तुमसे मिलना इत्तेफ़ाक नहीं, हर बार कुछ बेवजह हो , यह सही तो नहीं जब इस भीड़ में खुद को खो देना कहीं, लौट आना वहां जहां मिले थे हम कभी, ये मंजिलें , ये रास्ते इतनी भी सस्ते कहां है, जब निकल पड़े हो अकेले, क्यों पूछते हो रास्ते कहां है? कुछ कर दिखा जिंदगी में ऐसा, किसी ने सोचा तक न हो वैसा। ---अभिषेक सिंह आशा करता हूं कि यह कविता आपको पसंद आएगी।। 🙏🙏धन्यवाद🙏🙏